16 दिन से अनशन जारी : गोरखालैंड राज्य के चाहत मौत के करीब पहुंचे दार्जिलिंग में तीन युवा आंदोलनकारी
विमल थुलुंग
वीर गोरखा न्यूज नेटवर्क
दार्जिलिंग : पहाड़ की राजनीति से दूर केवल गोरखालैंड राज्य की चाहत लिए पिछले 16 दिनों से आमरण अनशन में बैठे तीन गोरखा युवकों की स्थिति दिनों-दिन बद से बदतर होती जा रही है। GMCC और GSSS की उधेड़बुन भरी राजनीति से दूर इन तीन युवाओं के हौंसलें और इरादे अब भी पहले की तरह बेहद मजबूत दिखाई देते है। हालांकि 16 दिनों के आमरण अनशन के चलते इस तीनों के शरीर ने साथ देना कम कर दिया है। जब तक गोरखालैंड नहीं बनता, तब तक अपने अनशन को ना तोड़ने के लिए दृढसंकल्पित अमर सुब्बा (34 वर्ष), नोर्देन वांग्दी डुक्पा (30 वर्ष ), राकेश छेत्री (36) की मेडिकल कंडीशन अब बहुत खराब होने चली है। तीनों के मूत्र से कई दिनों से रक्त आ रहा है। चलने के लिए भी अब इन सभी को मुश्किलें होने लगी है।
सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि इन तीनों की फ़िक्र करने वाले महज पहाड़ के लोग बच गए है। इन सच्चें गांधीवादी आंदोलनकारियों के लिए मिल रहा है तो केवल खोखले आश्वासन, आखिर वह भी कब तक ? क्या सभी इनकी मौत का तमाशा देखने के लिये तमाशबीन बने बैठे है। जब इनके हौंसलें अब भी परवान पर है तो बाकी लोग धीरे-धीरे खामोशी की चादर ओढ़ने की तरह क्यों अग्रसर है ? क्या गोरखालैंड के लिए इनके योगदान को कम समझा जाए ?
हद तो यह है कि पहाड़ से हजारों किलोमीटर दूर राजधानी दिल्ली में GMCC-GSSS-GJMM के लोग एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने के खेल में मस्त है। इन सभी की चिन्ताएं गोरखालैंड आंदोलन की ड्राइविंग सीट पर कब्जा कर, उसमें बैठने की ज्यादा नजर आने लगी है। क्या दिल्ली में मौजूद GSSS और GMCC के सदस्यों में इतनी मानवता बची है कि वह इन तीन सच्चें आंदोलनकारियों कर लिए सिवाय सहानुभूति दिखाने के अलावा कुछ ठोस पहल करें। भगवान ना करें कि कहीं कुछ ठोस होने से पहले ही कुछ अनिष्ट ना हो जाए।
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